न बैठ हार कर अभी से इस तरह तू ,
अपनी ज़िन्दगी का भार तो उठा पगले !!!
कश्तियाँ शांत सागरों में भी डूब जाती हैं ,
न पतवार से तू हाथ को हटा पगले !!!
ज़ख्म का इलाज न हो , तो नासूर बनते हैं ,
इस तरह अपनी चोट ना छिपा पगले!!!
पूजी जाती हैं बस मूर्तियाँ मंदिरों में ही ,
अपने आप को पत्थर तो न बना पगले!!!
ज़माने लग जाते हैं बटोरने में खुशियों को ,
ज़िन्दगी के जुए में खुशियाँ न लुटा पगले !!
खुश रहने को बहुत सी बातें हैं जहां में ,
मायूसियों के चेहरे से नकाब हटा पगले !!!
न बैठ हार कर अभी से इस तरह तू ,
अपनी ज़िन्दगी का भार तो उठा पगले !!!
"शैली"
बहुत अच्छी कविता , प्रेरणादायक |
ReplyDelete.
कौन कहता है आसमान में सुराख़ नहीं होता ,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों |
-दुष्यंत कुमार
सादर
छोटा भाई बड़ी बहन से झगड़ता तो है , पर उसका स्नेह और प्रशंसा भी उतनी ही प्यारी लगती है।धन्यवाद मेरे प्रिय भाई।
Deleteसही मायनों में ये आपकी ब्लोगिंग की शुरुआत है |
ReplyDeleteभविष्य के लिए असीम शुभकामनायें |
Thank you my bro...it was possible because of u :)
Deletemany many cngrts di....wow:)
ReplyDeleteThank you dearest sister for being here. Means a lot to me :)
Deleteसच जिसने अपना भार स्वयं उठाना सीख लिया उसने जिंदगी जीने का गुर सीख लिया समझो ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया हौसले बुलंद कराती रचना ..
आपका बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी। ब्लॉग पर आने के लिए भी और उत्साहवर्धन करने के लिए भी।
Deleteबेह्तरीन .
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/