Friday 15 February 2013

सुन ओ पगले ...


न बैठ हार कर अभी से इस तरह तू ,

अपनी ज़िन्दगी का भार तो उठा पगले !!!

कश्तियाँ शांत सागरों में भी डूब जाती हैं ,

न पतवार से तू हाथ को हटा पगले !!!

ज़ख्म का इलाज न हो , तो नासूर बनते हैं ,

इस तरह अपनी चोट ना छिपा पगले!!!

पूजी जाती हैं बस मूर्तियाँ मंदिरों में ही ,

अपने आप को पत्थर तो न बना पगले!!!

ज़माने लग जाते हैं बटोरने में खुशियों को ,

ज़िन्दगी के जुए में खुशियाँ न लुटा पगले !!

खुश रहने को बहुत सी बातें हैं जहां में ,

मायूसियों के चेहरे से नकाब हटा पगले !!!

न बैठ हार कर अभी से इस तरह तू ,

अपनी ज़िन्दगी का भार तो उठा पगले !!!

"शैली"



9 comments:

  1. बहुत अच्छी कविता , प्रेरणादायक |
    .
    कौन कहता है आसमान में सुराख़ नहीं होता ,
    एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों |
    -दुष्यंत कुमार

    सादर

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    1. छोटा भाई बड़ी बहन से झगड़ता तो है , पर उसका स्नेह और प्रशंसा भी उतनी ही प्यारी लगती है।धन्यवाद मेरे प्रिय भाई।

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  2. सही मायनों में ये आपकी ब्लोगिंग की शुरुआत है |
    भविष्य के लिए असीम शुभकामनायें |

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    1. Thank you my bro...it was possible because of u :)

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  3. Replies
    1. Thank you dearest sister for being here. Means a lot to me :)

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  4. सच जिसने अपना भार स्वयं उठाना सीख लिया उसने जिंदगी जीने का गुर सीख लिया समझो ...
    बहुत बढ़िया हौसले बुलंद कराती रचना ..

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    1. आपका बहुत बहुत शुक्रिया कविता जी। ब्लॉग पर आने के लिए भी और उत्साहवर्धन करने के लिए भी।

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  5. बेह्तरीन .
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