Monday 7 January 2013

ह्रदय संगीत

मैंने तो कोई गीत नहीं गाया ,
जाने कहाँ से गूँज पड़े ,
वादी में सुर,
वीणा की ध्वनि ,
मृदंग की थाप,
क्या ये मधुर संगीत रस,
मेरे ह्रदय से आया ??
बरबस ही झंकृत हुए,
मन के सितारों के तार ,
मन के आह्लाद से ,
कम्पित बारम्बार ,
मैंने तो किंचित भी ,
 घुंघरू   बजाया ......
क्या तुमने कुछ घोल दिया ,
मेरे मन के भीतर ,
कुछ मृदु सा , कुछ मधुर ,
कुछ प्रेम रस जैसा  सरल    , 
निश्चित ही तुमने मन  ,
प्रीत से सजाया ....
जानूं मैं जानूं अब ,
यह संगीत कहा से आया ,
क्यूँ जीवन के गीत सा ये ,
ह्रदय में समाया ......

"शैली"

1 comment:

  1. कस्तूरी उर में बसे , मृग ढूंढें वन मांहि |
    अगर मन प्रसन्न है तो प्रकृति गीत-संगीत गाती हुई लगती है |

    सादर

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