
मैं आज ज़रा बाहर जाऊंगी ,
शाम को देर से ही आऊंगी ,
तब तक मेरी बातों को ,
ज़रा समझ के लिख लो ,
घर के सब तालों की चाभियाँ ,
भी तुम ही रख लो ,
हो सकता है आने में ,
बहुत देर हो जाए ,
बंद हो जाएँ सब दरवाज़े ,
और द्वारपाल सो जाए .....
तुम धीरे धीरे सब लगे हुए ,
तालों को खोल देना ,
कोठरी में पड़ी रद्दी को ,
बेचने को तौल देना ,
मेरे लगाये पौधों को ,
पानी लगाते रहना ,
घर के बिखरे हुए सामान को ,
हौले से सजाते रहना ,
फ्रिज पर नोट लगा दिआ हैं ,
तुम्हारे काम आएगा .
पानी पर ध्यान देना ,
बहते बहते ख़त्म हो जाएगा .....
सामने आँगन के पीपल में ,
एक अंडा फूटेगा ,
तुम उस नन्हे से परिंदे को ,
दाना चुगा देना ,
घर के सामने से सुबह,
एक गाय गुजरेगी ,
मेरे नाम से उसे ,
एक रोटी खिला देना ,
मैं लौट आऊंगी ,
शायद जल्दी मुमकिन न हो आना ,
तुम इंतज़ार न करना ,
खाना खा के सो जाना .....
:शैली
मैं लौट आऊंगी ,
ReplyDeleteशायद जल्दी मुमकिन न हो आना ,
तुम इंतज़ार न करना ,
खाना खा के सो जाना .....
Waah Great Great Great Sis :)
Is Khyal Pe Ek Mera Khyal :)
ReplyDeleteसोचता हूँ इस ख्याल पे लिख दूँ
ख्याल कोई ?
या करूँ सवाल कोई ?
बातें हज़ार है सवाल कई सारे
जाना और लौट कर आना ,
जल्दी मुमकिन हो न हो ,
वक़्त बड़ा पाबंद है ,
अकेले दम घुटता है बहुत ,
वक़्त के पहले आना ,
रात का इंतज़ार मत करना ,
साँझ ढले आना ,
खाना तो खाऊँगा मै जरूर
सुनो जाते हो तो जाओ
देर मत करना
बस तुम चले आना।
सुन्दर प्रस्तुति। आभार।।
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ज्ञान - तथ्य ( भाग - 1 )
bahut bahut shukriya Harshwardhan ji, aap blog par aaye, mera manobal badhaya. bahut aabhaari hoon!!
Deleteदिल चाहता है ,... क्या बात है !!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी रचना है शैली जी ..
Sanjay ji bahut bahut shukriya. aap ke shabdon se meri bahut hauslafzaayee hui!!
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