Monday 16 September 2013

मैं जा के आती हूँ ....

सुनो ,

मैं  आज ज़रा बाहर जाऊंगी ,
शाम को देर से ही आऊंगी ,
तब तक मेरी बातों को ,
ज़रा समझ के लिख लो ,
घर के सब तालों की चाभियाँ ,
भी तुम ही रख लो ,

हो सकता है आने में ,
बहुत देर हो जाए ,
बंद हो जाएँ सब दरवाज़े ,
और द्वारपाल सो जाए .....

तुम धीरे धीरे सब लगे हुए ,
तालों को खोल देना ,
कोठरी में पड़ी रद्दी को ,
बेचने को तौल देना ,

मेरे लगाये पौधों को ,
पानी लगाते रहना ,
घर के बिखरे हुए सामान को ,
हौले से सजाते रहना ,

फ्रिज पर नोट लगा दिआ हैं ,
तुम्हारे काम आएगा .
पानी पर ध्यान देना ,
बहते बहते ख़त्म हो जाएगा .....

सामने आँगन के पीपल में ,
एक अंडा फूटेगा ,
तुम उस नन्हे से परिंदे को ,
दाना  चुगा देना ,
घर के सामने से सुबह,
एक गाय गुजरेगी ,
मेरे नाम से उसे ,
एक रोटी खिला देना ,

मैं लौट आऊंगी ,
शायद जल्दी मुमकिन न हो आना  ,
तुम इंतज़ार न करना ,
खाना खा के सो जाना .....

:शैली