खामोशियों को , अपनी ज़ुबान हम देंगें ,
दुखते जहां को , खुशियों का सामान हम देंगे ,
हम वो नहीं जो डर के छुपा लें अपने तर्कश को ,
जलते तीरों को , तानी कमान हम देंगे ,
चिल्लाते रहे तुम , कभी ख़ुदा न मिला ,
कल से मस्जिद से पहली अज़ान हम देंगे ,
हौसलों को दर-ब-दर भटकने को किया मजबूर ,
इनको मज़बूत औ पुख्ता मकान हम देंगे ,
धूप में झुलसे , भटकते राही को ,
एक लम्हा ठहरने को वितान हम देंगे ,
बहुत अधूरे हो ले कर अपने हिस्से की ज़मीं ,
पूरे हो जाओगे जब आसमान हम देंगें ,
परखने चले हो आज हमारा दीन-ओ-ईमान ,
घबराता कौन है , खुल के इम्तिहान हम देंगें ,
खामोशियों को , अपनी ज़ुबान हम देंगें ,
दुखते जहां को , खुशियों का सामान हम देंगे ,
"शैली
bahut sundar abhivyakti ..sundar lekhan :-)
ReplyDeleteबहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.
ReplyDeleteआपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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