Friday, 29 November 2013

हथेली का सूर्य

हथेलियाँ फैलाये ,
गंगाजल हाथ में लिए , 
आचमन करते हुए , 
उगता सूरज हाथों में , 
प्रतिबिंबित होते देखा , 
मेरे हाथ में ही प्रकाश है ,
हाथ से उगेगा सूर्य , 
ह्रदय तक जाएगा , 
पूरे तन में रश्मियाँ फैलेंगी , 
कभी हो सकता है , 
ताप ज़यादा तेज हो जाये , 
उस समय तुम , 
अपनी आँखें ढँक लेना , 
सांझ की प्रतीक्षा करना , 
जितना चढ़ा है सूर्य , 
उतना उतरेगा भी , 
उसे वापिस हथेली में समेट लेना , 
सुबह होने में देर नहीं ....

:शैली

Tuesday, 12 November 2013

क्या कहें , क्या नहीं ....

कुछ कहा भी नहीं और कुछ सुना भी नहीं ,
ख्वाब देखा भी नहीं , ख्याल कुछ बुना भी नहीं।

इश्क़  लहर है, एक सिम्त कहाँ  बहती है ,
डूब के देखा है, ये आग का दरिया भी नहीं।

तैरते बहते रहे और कभी उबरे डूबे ,
इतना मुश्किल भी नहीं और ये आसां भी नहीं।

दिल को हैरां  किया ,लिया जान का जोखिम ,
आँख शर्मिंदा नहीं और मन  पशेमां भी नहीं।

वो एक शख्स जो मोहब्बत के दावे करता था ,
आज दूर बहुत  है मुझसे, और परेशां भी नहीं।

बड़ा शातिर था क़ातिल , क़त्ल कर बैठा ,
बरी भी हो गया ,  हमें हुआ गुमां भी नहीं।

सब उसी आग में जलते हैं जिसमे जले हैं हम ,
राख हुए हैं हम ,और ज़रा धुंआ भी नहीं।

:शैली 

Monday, 16 September 2013

मैं जा के आती हूँ ....

सुनो ,

मैं  आज ज़रा बाहर जाऊंगी ,
शाम को देर से ही आऊंगी ,
तब तक मेरी बातों को ,
ज़रा समझ के लिख लो ,
घर के सब तालों की चाभियाँ ,
भी तुम ही रख लो ,

हो सकता है आने में ,
बहुत देर हो जाए ,
बंद हो जाएँ सब दरवाज़े ,
और द्वारपाल सो जाए .....

तुम धीरे धीरे सब लगे हुए ,
तालों को खोल देना ,
कोठरी में पड़ी रद्दी को ,
बेचने को तौल देना ,

मेरे लगाये पौधों को ,
पानी लगाते रहना ,
घर के बिखरे हुए सामान को ,
हौले से सजाते रहना ,

फ्रिज पर नोट लगा दिआ हैं ,
तुम्हारे काम आएगा .
पानी पर ध्यान देना ,
बहते बहते ख़त्म हो जाएगा .....

सामने आँगन के पीपल में ,
एक अंडा फूटेगा ,
तुम उस नन्हे से परिंदे को ,
दाना  चुगा देना ,
घर के सामने से सुबह,
एक गाय गुजरेगी ,
मेरे नाम से उसे ,
एक रोटी खिला देना ,

मैं लौट आऊंगी ,
शायद जल्दी मुमकिन न हो आना  ,
तुम इंतज़ार न करना ,
खाना खा के सो जाना .....

:शैली