दूर जहां मिलते हैं धरा और गगन ,
उस क्षितिज के उजालों और अंधेरों में ,
एक कोना मेरा भी है ....
स्वप्न नगरी में उड़ते हैं कितने ही ख़्वाब ,
उन में एक,
सपना सलोना मेरा भी है ....
कहते हैं हर एक रात की होती है एक सुबह ,
जागती प्रतीक्षारत आँखों को ,
एक सवेरा मेरा भी है ....
ज़मीन पर कितने घरौंदे और जाने कितने मकां ,
इन घरों में ,
एक रैन बसेरा मेरा भी है .....
बस चाहिए थोड़ी ज़मीं और ज़रा सा आसमां ,
फिर तो कहने को ,
सारा जहां मेरा ही है ....
"शैली"