मैंने तो कोई गीत नहीं गाया ,
जाने कहाँ से गूँज पड़े ,
वादी में सुर,
वीणा की ध्वनि ,
मृदंग की थाप,
क्या ये मधुर संगीत रस,
मेरे ह्रदय से आया ??
बरबस ही झंकृत हुए,
मन के सितारों के तार ,
मन के आह्लाद से ,
कम्पित बारम्बार ,
मैंने तो किंचित भी ,
घुंघरू न बजाया ......
क्या तुमने कुछ घोल दिया ,
मेरे मन के भीतर ,
कुछ मृदु सा , कुछ मधुर ,
कुछ प्रेम रस जैसा सरल ,
निश्चित ही तुमने मन ,
प्रीत से सजाया ....
जानूं मैं जानूं अब ,
यह संगीत कहा से आया ,
क्यूँ जीवन के गीत सा ये ,
ह्रदय में समाया ......
"शैली"